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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

व्यक्तिगत निर्देशन का अर्थ

व्यक्तिगत निर्देशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी समस्या को समझकर, उसके कारणों का पता लगाता है तथा समस्याओं का समाधान करके समाज से समायोजन स्थापित करने में मदद दी जाती है। इस प्रकार का निर्देशन प्राप्त व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का समुचित विकास करने में समर्थ होता है और एक संतुलन की अवस्थां प्राप्त करता है।

व्यक्तिगत असन्तुलन की नींव व्यक्ति के शैशवकाल में ही पड़ जाती है। बालक के ये प्रारम्भिक वर्ष बड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं। इनमें सुरक्षा, स्नेह, स्वतंत्रता और उचित पोषण की कमी हो जाने से भविष्य में असन्तुलन उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है। व्यक्तित्व के ये दोष जो समस्या के रूप में व्यक्ति के सामने पेश होते हैं, इस प्रकार हैं-

(i) कुछ व्यक्ति लज्जालु हो जाते हैं और एकाकीपन का अनुभव करते हुए समाज से अपने को दूर रखने का प्रयास करते हैं।
(ii) कुछ व्यक्ति अतिशय क्रियाशील हो जाते हैं। उनमें उद्दण्डता आ जाती है।
(iii) अतिशय संवेदनशीलता कुछ व्यक्तियों में विषमता उत्पन्न कर देती है।
(iv) कुछ लोगों की समस्या का कारण उनकी अनवरत चिन्ता होती है।
(v) उदासी भी एक समस्या होती है।
(vi) कुछ लोगों में व्यवहार सम्बन्धी दोष उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे-चोरी करना, झूठ बोलना, काम छोड़कर भागना, गाली-गलौज, मारपीट करना।
(vii) कुछ लोग निरर्थक क्रियाएँ करते हैं, जैसे- लगातार हाथ मलना इत्यादि।
(viii) अकारण भय होना, जैसे पानी से डरना, चूहों से डरना, बन्द जगह से डरना, खुली जगह से डरना इत्यादि।
(ix) कुछ लोगों में दोहरा व्यक्तित्व उत्पन्न हो जाता है।

अतः सारांश रूप में कहा जा सकता है कि शैक्षिक और व्यावसायिक जगत के अलावा मानव जीवन के अन्य पक्षों से सम्बन्धित समाधान के लिये जो निर्देशन दिया जाता है वह व्यक्तिगत निर्देशन कहलाता है। मानव जीवन के अन्य पक्षों को जिनसे सम्बन्धित समस्यायें उत्पन्न होती हैं और व्यक्ति को संवेगात्मक रूप से असन्तुलित करने की क्षमता रखती हैं, नीचे चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है -

2709_01_32-

उपर्युक्त चित्र को देखने से यह स्पष्ट हो रहा है कि शैक्षिक निर्देशन शिक्षा जगत से सम्बन्धित है और व्यावसायिक निर्देशन व्यावसायिक जगत से सम्बन्धित है। किन्तु व्यक्तिगत निर्देशन में जीवन से सम्बन्धित अनेकों ऐसे पक्ष हैं जिनके साथ सुसमायोजत करकें ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास किया जा सकता है। व्यक्ति के जीवन को आनन्दमय बनाने के लिए उपर्युक्त पक्षों से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान के लिये जो भी सहायता दी जाती है, वह व्यक्तिगत निर्देशन कहलाती है। इस प्रकार व्यक्तिगत निर्देशन शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित क्रियाओं, नैतिक विकास की क्रियाओं, पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं, एवं संवेगात्मक अस्थिरता से सम्बन्धित समस्याओं से सम्बन्धित है।

व्यक्तिगत निर्देशन का स्वरूप या प्रकृति-

व्यक्तिगत निर्देशन के दो पक्ष हैं-

(1) समस्या का निदान
(2) उसका उपचार

(1) समस्या का निदान - व्यक्तिगत निर्देशन के अन्तर्गत पहले व्यक्ति की समस्या को समझने का प्रयास किया जाता है। इस पक्ष को समस्या का निदान कहते हैं। इसमें समस्या के स्वरूप और उसके कारणों की खोज की जाती है। इसके लिए व्यक्ति के परिवार, पड़ोस, शैक्षणिक स्थिति, व्यवसाय आदि का अध्ययन किया जाता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का भी विशद् अध्ययन किया जाता है उसके शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, नैतिक, चारित्रिक पक्षों का विश्लेषण किया जाता हैं और इस प्रकार व्यक्ति की समस्या के सही कारणों की खोज की जाती है। व्यक्ति के सम्बन्ध में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित सूचनाओं को संकलित किया जा सकता है-

(i) व्यक्ति का शारीरिक विकास और स्वास्थ्य - विकास की विस्तार से जाँच की जाती है- आयु, वजन, हर अंग का स्वरूप और शक्ति, शारीरिक दोष, लंगड़ापन, लूलापन, दृष्टि-दोष, श्रवण- दोष, हकलाना, रोग इत्यादि। प्रायः शारीरिक विकास की कमी संवेगात्मक विक्षोभ उत्पन्न करके हीनता की ग्रन्थि बना देती है।

(ii) व्यक्तित्व की विशेषताएँ - व्यक्ति अन्तर्मुखी है या बहिर्मुखी, संवेगात्मक परिपक्वता कैसी है, उसमें संवेगात्मक स्थिरता कैसी है, उसमें बहु-व्यक्तित्व का दोष तो नहीं है या कोई अन्य दोष तो नहीं है आदि ऐसी बाते हैं जिनकी जानकारी प्राप्त की जाती है।

(iii) मानसिक विशेषताएँ व्यक्ति के बुद्धि - स्तर तथा मानसिक योग्यताओं के स्तर की जानकारी प्राप्त की जाती है। उसकी रुचियाँ और अभियोग्यताएँ भी मापने की कोशिश की जाती है।

(iv) पारिवारिक दशा - व्यक्ति जिस परिवार का है, उनमें कौन-कौन लोग हैं, कौन अभिभावक हैं, माँ-बाप हैं कि नहीं, व्यक्ति की परवरिश किसने की, अभिभावकों का स्वभाव, उनकी आदतें, चरित्र, व्यक्ति के भाई-बहन और अन्य सम्बन्धी जो घर में रहते हैं उनका स्वभाव इत्यादि, घर के नौकर, उसकी आदतों की जानकारी प्राप्त की जाती है। इसमें कोई भी तत्त्व व्यक्ति की समस्या से सम्बन्धित हो सकता है।

(v) सामाजिक दशा - व्यक्ति बचपन से किस तरह के समाज में रहा है यह भी एक महत्त्वपूर्ण बात है। पास-पड़ोस, क्लब, साथी-संगी और मित्रगण इन सबसे उसके समाज का निर्माण होता है। इन सबकी विशेषताएँ और दोष प्रकाश में आने चाहिए। समाज के लोग जो व्यक्ति से सम्बन्धित हैं, उनका नैतिक व चारित्रिक स्तर कैसा है, आदतें कैसी हैं इत्यादि।

(vi) आर्थिक दशा - व्यक्ति के परिवार की आर्थिक दशा आमदनी, खर्च, जिम्मेदारियाँ तथा उसकी अपनी आर्थिक स्थिति और जिम्मेदारियाँ ये सब बातें व्यक्ति की समस्याओं के लिए उत्तरदायी हो सकती हैं।

(vii) विद्यालय का जीवन - व्यक्ति के पाठशाला का जीवन कैसा था? उसके अध्यापक, उनकी आदतें, व्यवहार, व्यक्ति की विद्यालय में सम्प्राप्तियाँ, सामान्य असामान्य विषयों के प्रति रुचि इत्यादि बातें ऐसी हैं जो व्यक्ति की समस्याओं को प्रभावित कर सकती हैं। इन सबका पता लगाना आवश्यक है।

(viii) व्यावसायिक जीवन - व्यक्ति ने कौन-कौन से व्यवसाय किए? उसकी रुचि कैसी थी? वहाँ उसे किस प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध थीं? उसका अपने साथियों, अधिकारियों और मातहतों से कैसा व्यवहार और सम्बन्ध था? ये सब बातें ऐसी हैं जो व्यक्ति के जीवन में अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं। इसलिए इन सबकी जानकारी आवश्यक है। व्यक्ति की समस्या को समझने के लिए उपर्युक्त सभी प्रकार की सूचनाएँ लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं।

2. उपचार

उपचार का तात्पर्य - व्यक्ति की समस्या को भली-भाँति समझकर और उसके मूल कारणों की जानकारी प्राप्त कर लेने के उपरान्त उपचार शुरू होता है। उपचार का तात्पर्य है- व्यक्ति को उसकी समस्याओं से मुक्त करना। उसकी ग्रन्थियों को खोलकर उसकी मानसिक और संवेगात्मक रचना को सरल बनाया जाता है, ताकि व्यक्ति अधिक संतोषजनक और सुखपूर्ण जीवन व्यतीत कर सके। उपचार का यही लक्षण होता है।

उपचार की विधियाँ - उपचार में जो विधियाँ प्रयोग की जाती हैं उन्हें दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

(1) परामर्श
(2) मानसिक चिकित्सा

(1) परामर्श - जब व्यक्ति की समस्या सामान्य होती है तो परामर्श से काम चलाया जाता है। इसमें परामर्शदाता पहले व्यक्ति से घनिष्ठता स्थापित करता है। उससे इस प्रकार बोलता और बातचीत करता है कि व्यक्ति उसमें विश्वास करने लगता है। उससे आत्मीयता का अनुभव करने लगता है। जब यह स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो निर्देशक युक्तिपूर्ण तर्कों द्वारा व्यक्ति को उसकी समस्या की जानकारी कराकर उसे सुलझाने में सहायता देता है। इस प्रकार सामान्य समस्याएँ केवल परामर्श द्वारा ही सुलझ जाती हैं।

परामर्श देने वाला व्यक्ति आमतौर पर समस्या- व्यक्ति से आयु, अनुभव और ज्ञान में बड़ा होता है। दोनों समस्या पर विचार-विनिमय करते हैं और इस प्रकार व्यक्ति को अपनी समस्या की जानकारी हो जाती है। उसे स्वयं अपनी समस्या को हल करने योग्य बना दिया जाता है।

(2) मानसिक चिकित्सा है- यदि व्यक्ति की समस्या जटिल होती है और परामर्श से काम नहीं चलता तो मानसिक चिकित्सा की विधियाँ प्रयोग करनी पड़ती हैं, जो इस प्रकार हैं-

(i) वातावरण में परिवर्तन है - जब व्यक्ति की समस्या किसी विशेष वातावरण की परिस्थितियों से सम्बन्धित होती हैं तो उसमें परिवर्तन करके व्यक्ति को काफी लाभ पहुँचाया जा सकता है। उसे इंस वातावरण से हटाकर दूसरे वातावरण में रख दिया जाता है। छात्रालय या आवासीय विद्यालय इस परिवर्तन के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं।

(ii) सुझाव - संवेगात्मक कठिनाइयों को दूर करने के लिए व्यक्ति को सीधे-सीधे निर्देश दे दिए जाते हैं। वे प्रेम और सहानुभूतिपूर्वक दिए जाते हैं जो प्रायः व्यक्ति के लिए काफी सहायक सिद्ध होते हैं।

(iii) स्थानापन्न क्रियाओं का प्रयोग है - इस विधि के अन्तर्गत व्यक्ति को क्रिया के स्थान पर उसी से सम्बन्धित अधिक उत्कृष्ट क्रिया को स्थानापन्न किया जाता है। एक क्रिया की जगह पर व्यक्ति को दूसरी अच्छी क्रिया में लगा दिया जाता है। जैसे- काम प्रधान क्रियाओं के स्थान पर संगीत या कला को स्थानापन्न किया जा सकता है।

(iv) युक्तिपूर्ण तर्क - इसमें तर्कपूर्ण ढंग से व्यक्ति को उसकी समस्या के सम्बन्ध में वास्तविक जानकारी प्रदान की जाती है। उसकी भ्रान्तिपूर्ण धारणाओं को तर्कों के द्वारा समाप्त किया जाता है और उसे वास्तविकता का ज्ञान देकर अपनी समस्या को हल करने के योग्य बनाया जाता है।

(v) व्यावसायिक चिकित्सा है - व्यक्ति को कुछ व्यवसायों में लगा दिया जाता है जिससे काम मिल जाने से एक तो उनका मन एक स्थान या वस्तु पर केन्द्रित हो जाता है और दूसरे आर्थिक लाभ होने से भी उनकी कई समस्याएँ अपने आप सुलझ जाती हैं।

(vi) सामूहिक चिकित्सा - एक ही प्रकार की समस्या वाले कई व्यक्तियों की चिकित्सा एक-साथ की जाती है। इस प्रकार समूह की एक साथ चिकित्सा करने की विधि सामूहिक चिकित्सा कहलाती है।

(vii) नॉन-डाइरेक्टिव चिकित्सा - इस विधि में चिकित्सा बीच-बीच में व्यक्ति से उत्तेजक सवाल पूछता जाता है और व्यक्ति अपने आन्तरिक भावों और विचारों को व्यक्त करता है। बोलने का अधिकांश काम व्यक्ति करता है, निर्देशक एक श्रोता के रूप में धैर्य से उसकी बातों को सुनता है। लेकिन व्यक्ति से प्रश्न करने और उससे उत्तर प्राप्त करने के पहले चिकित्सक उस व्यक्ति में सद्भाव और विश्वास पैदा करता है। फिर व्यक्ति बिना हिचक और रोक-टोक के अपनी सारी बातें चिकित्सक से कहता चला जाता है। जब वह सारी बातें कह लेता है तो अपने आप ठीक हो जाता है।

(viii) मनोविश्लेषण - फ्रायड ने मनुष्य की मानसिक समस्याओं का सम्बन्ध उसके अचेतन मन से जोड़ा है और समस्या को समझने और रोग की चिकित्सा करने की दो विधियाँ बताई हैं-

(a) मुक्त साहचर्य विधि - मुक्त साहचर्य विधि में व्यक्ति के सामने कोई उत्तेजक शब्द या विचार रखा जाता है और व्यक्ति स्वतंत्रतापूर्वक जो भी विचार उसके मन में आये, कहता जाता है। इस प्रकार अनेक दबी     इच्छाओं और भावनाओं का प्रकटीकरण हो जाने से व्यक्ति रोग से मुक्त हो जाता है।
(b) स्वप्न विश्लेषण विधि - स्वप्न विश्लेषण विधि में व्यक्ति के मन का अध्ययन उसके स्वप्नों के आधार पर किया जाता है और फिर अन्य विधियों द्वारा उसकी चिकित्सा की जाती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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